
उत्तराखंड में पलायन का दर्द, शव उठाने के लिए भी गांव में नहीं मिले लोग, दूसरे गांव के लोगों ने अगले दिन किया अंतिम संस्कार, अब गांव में बचे है केवल तीन बुजुर्ग।
उत्तराखंड में पालकियां का दर्द किसी से छुपा नहीं है, इस दर्द को बताने के लिए शब्दों की आवश्यकता शायद नहीं है। लेकिन रुद्रप्रयाग जिले के ल्वेगढ़ गांव के इस मामले में लोगों को उत्तराखंड के पहाड़ो की हालत पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। रुद्रप्रयाग के इस गांव में जिन घरों से हंसी ठिठोली की आवाजें आती थीं आज उन्हीं घरों में मौत होने के बाद शव उठाने के लिए चार कंधे नहीं मिल रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट से मिली जानकारी के अनुसार गांव में दो दिन पहले जब एक वृद्धा सीता देवी (90) की मौत हुई तो उसके अंतिम संस्कार के लिए घाट तक ले जाने के लिए चार कंधे तक नहीं मिले। मृतका का बीटा मानसिक रूप से कमजोर है, इसके अलावा गांव में केवल तीन बुजुर्ग ही रहते हैं। नजदीकी गांवों को जब इसकी सूचना मिली वहां से ग्रामीण गांव पहुंचे तब जाकर दूसरे दिन वृद्धा का अंतिम संस्कार हुआ।
बताया जा रहा है कि कभी 15-16 परिवारों वाले इस गांव में वर्तमान में महज तीन महिलाएं और एक पुरुष ही रह गए हैं। ऐसे में महिला की अंतिम संस्कार उस दिन नहीं हो पाया। गांव में अन्य कोई पुरुष नहीं था जो शव को घाट तक ले जा सके। सूचना मिली तो कलेथ, पांढरा मड़गांव, मलछोड़ा, सहित आसपास के गांवों के ग्रामीण ल्वेगढ़ पहुंचे। तब जाकर दूसरे दिन शव पैतृक घाट ले जाया गया और अंतिम संस्कार किया गया।
