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Ranikhetnews > Blog > संपादकीय > सेब, नाशपाती, आड़ू, प्लम, खुबानी, चेरी आदि यहां के परंपरागत फल नहीं, इसका श्रेय ब्रिटिश गवर्मेंट को जाता है। जानिए चौबटिया गार्डन रानीखेत और इन फलों का स्वर्णिम इतिहास। जिला उद्यान अधिकारी डा० राजेन्द्र कुकसाल का लेख।

सेब, नाशपाती, आड़ू, प्लम, खुबानी, चेरी आदि यहां के परंपरागत फल नहीं, इसका श्रेय ब्रिटिश गवर्मेंट को जाता है। जानिए चौबटिया गार्डन रानीखेत और इन फलों का स्वर्णिम इतिहास। जिला उद्यान अधिकारी डा० राजेन्द्र कुकसाल का लेख।

कामरान कुरैशी By कामरान कुरैशी August 31, 2025 4 Min Read
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सेब, नाशपाती, आड़ू, प्लम, खुबानी, चेरी आदि यहां के परंपरागत फल नहीं, इसका श्रेय ब्रिटिश गवर्मेंट को जाता है। जानिए चौबटिया गार्डन रानीखेत और इन फलों का स्वर्णिम इतिहास। जिला उद्यान अधिकारी डा० राजेन्द्र कुकसाल का लेख।

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में उत्पादित फल सेब नाशपाती आड़ू प्लम खुबानी चेरी आदि यहां के परंपरागत फल नहीं है। इन फलों का इन्ट्रोडक्सन व पहिचान एवं व्यवसायिक रूप देने का श्रेय ब्रिटिश गवर्मेंट को जाता है।

डा० राजेन्द्र कुकसाल

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में सेब की बागवानी 1855 से हैनरी रैम्जे के प्रयासों से नैनीताल के रामगढ़ और अल्मोड़ा जिलों में प्रारंभ हुई। गढ़वाल मंडल में 1859 में फ्रेडरिक विल्सन जो कि गोरों की पलटन का एक भगोड़ा सैनिक था ने हर्षिल क्षेत्र (उत्तरकाशी) में टिहरी के राजा से लीज पर जमीन लेकर इंग्लैंड / यूरोप से सेब की पौध मांगा कर सेब की बागवानी शुरू की।

उत्तराखंड में शीतोष्ण फलों की वैज्ञानिक ढंग से व्यवसायिक खेती की आधारशिला चौबटिया गार्डन वर्तमान में राजकीय उद्यान चौबटिया की स्थापना के बाद ही शुरू होती है।

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चौबटिया गार्डन जिसका नाम कुमाऊं गवर्नमैंन्ट गार्डन रखा गया था की स्थापना 1869 में हुई। डब्ल्यू क्रो (Crow ) को 1869 में चौबटिया गार्डन का प्रथम सुप्रीटेंडेंट बनाया गया जिन्होंने यहां पर यूरोप से सेब, नाशपाती, आड़ू खुवानी ,प्लम, चेरी, तथा जापान व स्पेन से चैस्टनट (मीठा पांगर) की फल पौधों का रोपण करवाया।

1914 में चौबटिया गार्डन को कुमाऊं वनविभाग से कुमाऊं कमिश्नर को सोंप दिया गया । कुमाऊं गवर्नमेंट गार्डन चौबटिया में गवर्मेंट हाउस गार्डन, कचहरी गार्डन , डिस्प्ले गार्डन नैनीताल तथा डगलस डेल हार्टिकल्चर गार्डन ज्योलिकोट को भी सम्मिलित कर दिया गया। नार्मन गिल को कुमाऊं गवर्मेंट गार्डन का सुप्रीटेंडेंट बनाया गया। नार्मन गिल ने फलों की बागवानी के साथ साथ जड़ी बूटियों की खेती पर भी काम करना शुरू किया इस कार्य में रामलाल साह ने एक सहयोगी के रूप में कार्य किया। गिल के कार्यकाल को कुमाऊं बागवानी का स्वर्णिम काल भी कहा जाता था।

1922 में पांचों उद्यान जो कुमाऊं गवर्नमैंन्ट गार्डन कहलाते थे कमिश्नर कुमाऊं की देखरेख से हटाकर कृषि विभाग लखनऊ के अन्तर्गत कर दिए गए। ब्रिटिश शासकों ने बर्ष 1932 में पर्वतीय क्षेत्रों में शीतोष्ण फलौ के उत्पादन सम्बन्धी ज्ञान जैसे पौधों को लगाना, पौधों का प्रसारण , मृदा की जानकारी खाद पानी देने,कटाई छंटाई,कीट व्याधियों से बचाव आदि के निराकरण हेतु चौबटिया उद्यान में हिल फ्रुट रिसर्च स्टेशन पर्वतीय फल शोध केंद्र की स्थापना की।

भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने उत्तर प्रदेश में अपने मुख्यमंत्री के कार्य काल में पर्वतीय क्षेत्रों के आर्थिक विकास को दृष्टिगत रखते हुए रानीखेत में सन् 1953 में माल रोड़ रानीखेत (अल्मोड़ा) में किराए के भवनों में उद्यान विभाग का निदेशालय फल उपयोग विभाग उत्तर प्रदेश रानीखेत की स्थापना की । बर्ष 1990 में निदेशालय का नाम “उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग उत्तर प्रदेश” कर दिया गया।

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आलू अमरीकी महाद्वीप के पेरू देश से स्पेन होते हुए ब्रिटेन पहुंचा वहां से पूरे विश्व में फैला।भारत में गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिग्स ने अपने कार्यकाल 1782-85 के दौरान आलू की खेती को प्रोत्साहित किया।

उत्तराखण्ड में आलू की खेती देहरादून में 1823 में सर्वप्रथम मेजर यंग द्वारा मसूरी में की गई। हेनरी रैम्जे ने कुमाऊँ में आलू की खेती को प्रसारित किया । श्रीमती हैरी बर्जर ने सन् 1864 में यूरोप से आलू के बीज मंगा कर नैनीताल व आसपास के क्षेत्रों में रोपित किया।

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